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शंकर जी का हु माई पर्याय,
शीश कटे तो दल बने,
यदि मुझको उल्टा कर देखो,
बाप बहुत ही खुरदरा टेढ़ा-मेढ़ा होता,
तीन अक्षर का मेरा नाम, .मैं अलबेला कारीगर
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शंकर जी का हु माई पर्याय,
सबको मेरा रंग सबको सुभाए।
मैं हूँ नभ पर खग काया,
कोई है जो मेरा नाम बताये।
शीश कटे तो दल बने,
पैर हटाये बाद
पेट निकले बाल है।
करो शब्द यह याद।
यदि मुझको उल्टा कर देखो,
लगता हूँ मैं नव जवान।
कोई प्रथक कोई नहीं रहता,
बूढ़ा, बच्चा या जवान।
बाप बहुत ही खुरदरा टेढ़ा-मेढ़ा होता,
देखते मन ललचाता है बेटा ऐसा होता है।
तीन अक्षर का मेरा नाम,
प्रथम कटे तो रहू पड़ा,
मध्य कटे तो हो जाऊ कड़ा
अंत कटे बनता कप,
नहीं समझना इसको गप्प।
.मैं अलबेला कारीगर
काटू काली घास,
राजा, रंक और सिपाही,
सिर झुकाते मेरे पास।
NDA | INDIA | OTHERS |
293 | 234 | 16 |
NDA | INDIA | OTHERS |
265-305 | 200 -240 | 15-30 |