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नीमच आंखों में राग द्वेष नहीं वितराग हो। संसार को खूब देख लिया अब आत्मा को देखने का अवसर आया है ।अंतर्मन के चक्षुओं को खोलने का मौका आया है। पर्व राज पर्युषण आया है। इसका मतलब बहुत समीप से अपनी आत्मा का अवलोकन करना है। हमारे मन के अंदर के विकारों का शोध करना है। घर में तपस्या का बड़ा महत्व है। परंतु वासनाओं पर विजय हीं सबसे बड़ी तपस्या है।यह बात आचार्य जिन सुंदर सुरी श्री जी महाराज ने कहीं ।वे जैन श्वेतांबर श्री भीड़ भंजन पार्श्वनाथ मंदिर श्री संघ ट्रस्ट पुस्तक बाजार के तत्वावधान में मिडिल स्कूल मैदान स्थित जैन भवन में आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि यदि हमने किसी की आत्मा दुखाई इन सब दोषों को धोने का समय आ गया है। पर्यूषण पर्व में 8 दिन तक साधु के वेश में पोषध व्रत करना चाहिए। इससे संयम जीवन का पालन होता है। और जीव हिंसा नहीं होती है। पोषध दान शील, सदाचार, ब्रह्मचर्य,आत्मा की साधना, का पालन करने से जीवन पवित्र होता है। ओटीटी प्लेटफॉर्म ने युवा वर्ग को संस्कारों से भटका कर बिगाड़ दिया है। दुर्भावना से कर्म बन्धन बंधते हैं इससे सदैव बचना चाहिए। आचार्य श्री ने परमात्मा की आज्ञा, सामयिक वंदन लोगस पोषध, पंच्चखान, लोगस मिथ्यतात्व ज्ञान, सम्यक का पालन, देव गुरु धर्म आदि विषयों पर विस्तार से प्रकाश डाला। पूज्य आचार्य भगवंत श्री जिनसुंदर सुरिजी मसा , धर्म बोधी सुरी श्री जी महाराज आदि ठाणा 8 का सानिध्य मिला। प्रवचन एवं धर्मसभा हुई। |
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293 | 234 | 16 |
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265-305 | 200 -240 | 15-30 |