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सितंबर2023 में मध्य प्रदेश के नीमच मंदसौर जिले के लगभग 7 हजार मछुआरे अपने परिवार के पालन को लेकर अपने समस्त संसाधनों नाव जाल को लेकर चम्बल नदी के बेक वाटर में मत्स्यखेत करने के लिए रवाना हुए, उम्मीद थी कि वे बड़ी मात्रा में मछलियाँ पकड़कर घर लौटेंगे। परंतु 15 सितंबर की उस दिन रात में, गांधी सागर जलाशय के केचमेंट एरिया में अत्यधिक बारिश होने के कारण अत्यधिक जल प्रवाह के आने की खबर ने मछुआरों एवं उनके परिवार में सनसनी फैला दी। मछुआरों के परिवार उनके सुरक्षित लौटने की प्रार्थना कर रहे थे और बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। परंतु मछुआरों के लिए वह रात किसी कयामत की रात से काम नहीं थी तुफानो से घिर पानी के बीच मछुआरों के पास उसे समय केवल एक ही विकल्प बचा था या तो अपने आप को बचाए या अपने संसाधनों को स्वयं के साथ संसाधनों के अपने आप को सुरक्षित रखना उनके लिए संभव नहीं था परंतु ईश्वर का धन्यवाद है कि कि उक्त जल प्रवाह में किसी भी मछुआरे की हताहत होने की खबर नहीं आई परंतु अपनी जान को बचाने के चक्कर में सभी मछुआरों के साधन संसाधन उक्तजल प्रवाह में बह कर चले गए जिसको लेकर मछुआरों के परिवारों पर रोजी-रोटी का संकट तो आया ही सही साथ ही नए सिरे से अपने काम को प्रारंभ करने के लिए संसाधन जुटाना आग के दरिया में तैरने के बराबर रहा उस समय मछुआरों ने अपने गृहणियों के आभूषणों को बेचकर अपने रोजी-रोटी के लिए संसाधनों को जुटाया परंतु उस कर्ज की अदाएगी और उसे आपदा के जख्मों के बोझतले आज भी मछुआरे एवम उसका परिवार अपनी जिंदगी जीने को मजबूर हो रहा है । उस दिन जो सपने टूट गए, वे आज भी परिवारों को परेशान कर रहे हैं। 1 साल से ज़्यादा समय बीत चुका है। त्रासदी के साथ-साथ राज्य सरकार की उदासीनता ने भी उनके दुर्भाग्य में योगदान दिया है। मछुआरों के परिवारों को अभी भी सरकार से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली है। राहत राशि की मांग को लेकर मछुआरों ने प्रदेश के मामा गरीबों के मसीहा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर मत्स्य मंत्री तुलसी सिलावट तक का दरवाजा खटखटाया परंतु जनप्रतिनिधि अधिकारियों ने उनकी सभी माँगों पर कोई ध्यान नहीं दिया जनप्रतिनिधियों एवं प्रभावशाली नेताओं ने परिवारों के लिए सहायता की घोषणा करते समय नेता बहुत उत्साही और भावुक थे। तब बहुत सारी भावुक घोषणाएं पानी पर लिखी गई थीं। मछुआरों ने अपना दुख जन् प्रतिनिधि से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों मंत्रियों तक को जाकर सुनाया आवेदन दिए निवेदन किया तो वही चुनाव के चक्कर में नेताओं जनप्रतिनिधियों अधिकारियों ने परिवारों को सहायता देने का वादा किया था। हालाँकि, आज तक कोई वित्तीय सहायता नहीं दी गई। कम से कम अब, राज्य को उनकी मदद के लिए आगे आना चाहिए। परिवार के सदस्यों को जान माल की क्षतिपूर्ति जानी चाहिए, जैसा कि 2019 के आपदा के वक्त पीड़ितों के परिवारों के लिए किया गया था। इस संबंध में राजस्व विभाग द्वारा रिपोर्ट बनाकर शासन को भेजी गई है परंतु करवाई ऊंट के मुंह में जीरे जैसी है, " आपदा के सताए मछुआरे पिछले एक साल से सहायता के लिए दर-दर भटक रहे है |
सितंबर2023 में मध्य प्रदेश के नीमच मंदसौर जिले के लगभग 7 हजार मछुआरे अपने परिवार के पालन को लेकर अपने समस्त संसाधनों नाव जाल को लेकर चम्बल नदी के बेक वाटर में मत्स्यखेत करने के लिए रवाना हुए, उम्मीद थी कि वे बड़ी मात्रा में मछलियाँ पकड़कर घर लौटेंगे। परंतु 15 सितंबर की उस दिन रात में, गांधी सागर जलाशय के केचमेंट एरिया में अत्यधिक बारिश होने के कारण अत्यधिक जल प्रवाह के आने की खबर ने मछुआरों एवं उनके परिवार में सनसनी फैला दी। मछुआरों के परिवार उनके सुरक्षित लौटने की प्रार्थना कर रहे थे और बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। परंतु मछुआरों के लिए वह रात किसी कयामत की रात से काम नहीं थी तुफानो से घिर पानी के बीच मछुआरों के पास उसे समय केवल एक ही विकल्प बचा था या तो अपने आप को बचाए या अपने संसाधनों को स्वयं के साथ संसाधनों के अपने आप को सुरक्षित रखना उनके लिए संभव नहीं था परंतु ईश्वर का धन्यवाद है कि कि उक्त जल प्रवाह में किसी भी मछुआरे की हताहत होने की खबर नहीं आई परंतु अपनी जान को बचाने के चक्कर में सभी मछुआरों के साधन संसाधन उक्तजल प्रवाह में बह कर चले गए जिसको लेकर मछुआरों के परिवारों पर रोजी-रोटी का संकट तो आया ही सही साथ ही नए सिरे से अपने काम को प्रारंभ करने के लिए संसाधन जुटाना आग के दरिया में तैरने के बराबर रहा उस समय मछुआरों ने अपने गृहणियों के आभूषणों को बेचकर अपने रोजी-रोटी के लिए संसाधनों को जुटाया परंतु उस कर्ज की अदाएगी और उसे आपदा के जख्मों के बोझतले आज भी मछुआरे एवम उसका परिवार अपनी जिंदगी जीने को मजबूर हो रहा है । उस दिन जो सपने टूट गए, वे आज भी परिवारों को परेशान कर रहे हैं।
1 साल से ज़्यादा समय बीत चुका है। त्रासदी के साथ-साथ राज्य सरकार की उदासीनता ने भी उनके दुर्भाग्य में योगदान दिया है। मछुआरों के परिवारों को अभी भी सरकार से कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली है। राहत राशि की मांग को लेकर मछुआरों ने प्रदेश के मामा गरीबों के मसीहा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से लेकर मत्स्य मंत्री तुलसी सिलावट तक का दरवाजा खटखटाया परंतु जनप्रतिनिधि अधिकारियों ने उनकी सभी माँगों पर कोई ध्यान नहीं दिया जनप्रतिनिधियों एवं प्रभावशाली नेताओं ने परिवारों के लिए सहायता की घोषणा करते समय नेता बहुत उत्साही और भावुक थे। तब बहुत सारी भावुक घोषणाएं पानी पर लिखी गई थीं।
मछुआरों ने अपना दुख जन् प्रतिनिधि से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों मंत्रियों तक को जाकर सुनाया आवेदन दिए निवेदन किया तो वही चुनाव के चक्कर में नेताओं जनप्रतिनिधियों अधिकारियों ने परिवारों को सहायता देने का वादा किया था। हालाँकि, आज तक कोई वित्तीय सहायता नहीं दी गई। कम से कम अब, राज्य को उनकी मदद के लिए आगे आना चाहिए। परिवार के सदस्यों को जान माल की क्षतिपूर्ति जानी चाहिए, जैसा कि 2019 के आपदा के वक्त पीड़ितों के परिवारों के लिए किया गया था। इस संबंध में राजस्व विभाग द्वारा रिपोर्ट बनाकर शासन को भेजी गई है परंतु करवाई ऊंट के मुंह में जीरे जैसी है, "
आपदा के सताए मछुआरे पिछले एक साल से सहायता के लिए दर-दर भटक रहे है
गौरतलब हो कि यह वही मछुआरे हैं जो आपदा के वक्त सरकार के कंधे से कंधा मिलाकर अपनी जान की परवाह किए बिना आम लोगों की मदद के लिए तुरंत तैयार रहते हैं परंतु आज वही लोग मदद के लिए दर-दर भटक रहे हैं ना तो शासन प्रशासन को उनकी चिंता है नहीं जनप्रतिनिधियों को किसी ने सच ही कहा है गरीब की थाली में अब पुलाव कहां क्योंकि शहर में अब चुनाव कहां मदद करने वाले खुद मदद के लिए जगह-जगह हाथ फैला रहे हैं परंतु कोई भी उनकी सुनने वाला नहीं है
NDA | INDIA | OTHERS |
293 | 234 | 16 |
NDA | INDIA | OTHERS |
265-305 | 200 -240 | 15-30 |