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नई दिल्ली (एजेंसी)। देश में पिछले 5 सालों में महंगाई ने अपना नया मुकाम हासिल कर लिया है। जहां 5 साल पहले भोजन की थाली 60 रुपए से बढ़कर 110 रुपए तक पहुंच गई है। 5 वर्षों में खाने के सामानों की कीमत 71 प्रतिशत तक बढ़ी है। इसमें आटा, दाल, चावल, तेल की भूमिका सबसे ज्यादा रही है। दाल की कीमतें भी एक माह में 30 रुपए तक बढ़ गई है। वहीं वेतन की स्थिति अभी भी कमजोर है। सरकारी कर्मचारियों का वेतन 37 प्रतिशत तक बढ़ा है, तो वहीं मजदूरी 5 साल में नहीं बढ़ पाई है।
वेतन और व्यय के बीच लगातार असमानता बढऩे के कारण परिवारों ने आवश्यक वस्तुओं और लक्जरी सामानों की खरीद में कटौती करना प्रारंभ कर दी है। इसका सबसे ज्यादा असर कपड़ों पर दिखाई दे रहा है। कपड़ों की खरीद में भारी गिरावट दर्ज की गई है। दूसरी ओर पिछले 3 सालों में थाली की लागत में 71 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। मासिक वेतन 37 प्रतिशत ही बढ़ा है। वहीं आकस्मिक मजदूरों की मजदूरी में ज्यादा वृद्धि नहीं हुई है। इनकी कमाई का 20 प्रतिशत भोजन पर खर्च हो रहा था, जो अब बढ़कर 40 प्रतिशत तक पहुंच गया है। अब मजदूर पहले से ज्यादा पैसा अपने भोजन पर खर्च कर रहा है। एक औसत भारतीय परिवार अपनी खाने के संबंधी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होगा। यदि वह नाश्ता दोपहर के भोजन और रात के खाने में दो थालियों के बराबर भोजन खाता हो। दालों की बढ़ती कीमते को लेकर किए गए सर्वे में यह बात सामने आई है कि थालियों की कीमत में चावल, तुवर दाल, प्याज, लहसुन, हरी मिर्च, अदरक, टमाटर, आटा, सूरजमुखी तेल, नमक की कीमतों का सबसे ज्यादा प्रभाव दिखाई दे रहा है। 100 रुपए में 5 किलो तक मिलने वाला आटा 160 रुपए तक पहुंच गया है। उदाहरण के लिए 125 ग्राम तुवर दाल खरीदने के लिए 5 वर्ष पहले 9 रुपए 30 पैसे खर्च होते थे, जो अब बढ़कर 20 रुपए पर पहुंच गया है। दूसरी ओर देशभर में बढ़ रही बेरोजगारी में अपना नया रिकॉर्ड कायम कर दिया है। 45 करोड़ लोग रोजगार ढूंढ रहे है, वहीं असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को भी मजदूरी का संकट बढ़ रहा है। ग्रामीण क्षेत्र में मनरेगा के काम के दिनों में लगातार कमी के कारण बढ़ी तादात में मजदूर शहरी क्षेत्रों में वापस काम की तलाश में पहुंच रहे है। शहरों में भी उन्हें जहां पुराने वेतन पर ही अभी काम मिल रहा है। वहीं अब उनके रहने और खाने की लागत बढ़ गई है। इसके कारण भी उनका नियमित बजट गड़बड़ा रहा है। दूसरी ओर महिलाओं को मिलने वाले रोजगारों में लगातार कमी आने के कारण महिलाओं की बेरोजगारी भी लगातार बढ़ रही है।
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नई दिल्ली (एजेंसी)। देश में पिछले 5 सालों में महंगाई ने अपना नया मुकाम हासिल कर लिया है। जहां 5 साल पहले भोजन की थाली 60 रुपए से बढ़कर 110 रुपए तक पहुंच गई है। 5 वर्षों में खाने के सामानों की कीमत 71 प्रतिशत तक बढ़ी है। इसमें आटा, दाल, चावल, तेल की भूमिका सबसे ज्यादा रही है। दाल की कीमतें भी एक माह में 30 रुपए तक बढ़ गई है। वहीं वेतन की स्थिति अभी भी कमजोर है। सरकारी कर्मचारियों का वेतन 37 प्रतिशत तक बढ़ा है, तो वहीं मजदूरी 5 साल में नहीं बढ़ पाई है।
वेतन और व्यय के बीच लगातार असमानता बढऩे के कारण परिवारों ने आवश्यक वस्तुओं और लक्जरी सामानों की खरीद में कटौती करना प्रारंभ कर दी है। इसका सबसे ज्यादा असर कपड़ों पर दिखाई दे रहा है। कपड़ों की खरीद में भारी गिरावट दर्ज की गई है। दूसरी ओर पिछले 3 सालों में थाली की लागत में 71 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। मासिक वेतन 37 प्रतिशत ही बढ़ा है। वहीं आकस्मिक मजदूरों की मजदूरी में ज्यादा वृद्धि नहीं हुई है। इनकी कमाई का 20 प्रतिशत भोजन पर खर्च हो रहा था, जो अब बढ़कर 40 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
अब मजदूर पहले से ज्यादा पैसा अपने भोजन पर खर्च कर रहा है। एक औसत भारतीय परिवार अपनी खाने के संबंधी जरूरतों को पूरा करने में सक्षम होगा। यदि वह नाश्ता दोपहर के भोजन और रात के खाने में दो थालियों के बराबर भोजन खाता हो। दालों की बढ़ती कीमते को लेकर किए गए सर्वे में यह बात सामने आई है कि थालियों की कीमत में चावल, तुवर दाल, प्याज, लहसुन, हरी मिर्च, अदरक, टमाटर, आटा, सूरजमुखी तेल, नमक की कीमतों का सबसे ज्यादा प्रभाव दिखाई दे रहा है। 100 रुपए में 5 किलो तक मिलने वाला आटा 160 रुपए तक पहुंच गया है। उदाहरण के लिए 125 ग्राम तुवर दाल खरीदने के लिए 5 वर्ष पहले 9 रुपए 30 पैसे खर्च होते थे, जो अब बढ़कर 20 रुपए पर पहुंच गया है। दूसरी ओर देशभर में बढ़ रही बेरोजगारी में अपना नया रिकॉर्ड कायम कर दिया है।
45 करोड़ लोग रोजगार ढूंढ रहे है, वहीं असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को भी मजदूरी का संकट बढ़ रहा है। ग्रामीण क्षेत्र में मनरेगा के काम के दिनों में लगातार कमी के कारण बढ़ी तादात में मजदूर शहरी क्षेत्रों में वापस काम की तलाश में पहुंच रहे है। शहरों में भी उन्हें जहां पुराने वेतन पर ही अभी काम मिल रहा है। वहीं अब उनके रहने और खाने की लागत बढ़ गई है। इसके कारण भी उनका नियमित बजट गड़बड़ा रहा है। दूसरी ओर महिलाओं को मिलने वाले रोजगारों में लगातार कमी आने के कारण महिलाओं की बेरोजगारी भी लगातार बढ़ रही है।