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कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक वृद्ध जोड़े को जिनके 19 वर्षीय बेटे ने वर्ष 2023 में आत्महत्या कर लिया था, आईवीएफ तकनीक के जरिए माता-पिता बनने की अनुमति दे दी है। हालांकि पति की उम्र आईवीएफ तकनीक के जरिए पिता बनने की उम्र सीमा को 4 साल पहले ही पार कर चुकी है। पति की उम्र 59 वर्ष हो चुकी है। आपको बता दूं कि आईवीएफ तकनीक से पिता बनने की अधिकतम उम्र सीमा 55 वर्ष है। असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी अधिनियम 2021 के अनुसार, पुरुष की अधिकतम उम्र 55 और महिला की 50 वर्ष से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। क्यों हाईकोर्ट ने बच्चा पैदा करने की दी इजाजत?कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुजुर्ग दंपति को आईवीएफ तकनीक के जरिए बच्चा पैदा करने की इजाजत देते हुए यह दलील दी कि पुरुष की उम्र ज्यादा लेकिन महिला की उम्र अभी भी आईवीएफ तकनीक से बच्चा पैदा करने की तकनीक की अधिकतम सीमा से चार साल कम है। कोर्ट ने कहा कि चूंकि इस प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी महिला की होगी न कि उसके पति की इसलिए दंपति को बच्चा पैदा करने की इजाजत दी जाती है। आईवीएफ में बाहरी शुक्राणु और अंडाणु का उपयोग करके बच्चा पैदा किया जाता है इसलिए पति की उम्र ज्यादा होने के बावजूद इजाजत दी जाती है। इस वजह से दंपति को हाई कोर्ट की लेनी पड़ी शरणदंपति ने अक्टूबर 2023 में अपने इकलौते बेटे को खोने के बाद एक निजी क्लिनिक से संपर्क किया। वहां डॉक्टरों ने महिला को “चिकित्सकीय रूप से फिट और आईवीएफ द्वारा डिंब दान के माध्यम से बच्चे को जन्म देने के योग्य” बताया लेकिन रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि वह केवल आईवीएफ के जरिए दान किए गए अंडों का इस्तेमाल कर मां बन सकती हैं। कानूनी विवाद पति की उम्र को लेकर था। दंपत्ति को कलकत्ता हाई कोर्ट की शरण लेनी पड़ी। भारत में कब पैदा हुआ था पहला IVF बच्चा?दुनिया भर में लगभग 10%-15% जोड़े बांझपन से प्रभावित हैं। ऐसे में लोगों की सूनी गोद भरने के लिए आईवीएफ तकनीक का आविष्कार हुआ और वर्ष 1978 में दुनिया में सबसे पहले आईवीएफ बच्चे लुई ब्राउन का जन्म हुआ। इंग्लैंड दुनिया का पहला देश है जिसने सहायता प्राप्त प्रजनन को विनियमित करने के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा 1990 के मानव निषेचन और भ्रूणविज्ञान अधिनियम को लागू किया था। वहीं भारत में पहली आईवीएफ बच्ची 1981 में कोलकाता में पैदा हुई। डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय के सफल प्रयासों के कारण इस बच्ची का जन्म हुआ लेकिन इस दावे को नैतिक दबावों के कारण सरकार द्वारा मान्यता नहीं दी गई थी। इसके 5 साल बाद 1986 में डॉ. टीसी आनंद कुमार और डॉ. इंदिरा हिंदुजा ने हर्षा नामक भारत के पहले आईवीएफ बच्चे का दावा किया और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इसे स्वीकार कर लिया। |
कलकत्ता हाईकोर्ट ने एक वृद्ध जोड़े को जिनके 19 वर्षीय बेटे ने वर्ष 2023 में आत्महत्या कर लिया था, आईवीएफ तकनीक के जरिए माता-पिता बनने की अनुमति दे दी है। हालांकि पति की उम्र आईवीएफ तकनीक के जरिए पिता बनने की उम्र सीमा को 4 साल पहले ही पार कर चुकी है। पति की उम्र 59 वर्ष हो चुकी है। आपको बता दूं कि आईवीएफ तकनीक से पिता बनने की अधिकतम उम्र सीमा 55 वर्ष है। असिस्टेड रिप्रोडक्टिव टेक्नोलॉजी अधिनियम 2021 के अनुसार, पुरुष की अधिकतम उम्र 55 और महिला की 50 वर्ष से ज्यादा नहीं होनी चाहिए।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने बुजुर्ग दंपति को आईवीएफ तकनीक के जरिए बच्चा पैदा करने की इजाजत देते हुए यह दलील दी कि पुरुष की उम्र ज्यादा लेकिन महिला की उम्र अभी भी आईवीएफ तकनीक से बच्चा पैदा करने की तकनीक की अधिकतम सीमा से चार साल कम है। कोर्ट ने कहा कि चूंकि इस प्रक्रिया में सक्रिय भागीदारी महिला की होगी न कि उसके पति की इसलिए दंपति को बच्चा पैदा करने की इजाजत दी जाती है। आईवीएफ में बाहरी शुक्राणु और अंडाणु का उपयोग करके बच्चा पैदा किया जाता है इसलिए पति की उम्र ज्यादा होने के बावजूद इजाजत दी जाती है।
दंपति ने अक्टूबर 2023 में अपने इकलौते बेटे को खोने के बाद एक निजी क्लिनिक से संपर्क किया। वहां डॉक्टरों ने महिला को “चिकित्सकीय रूप से फिट और आईवीएफ द्वारा डिंब दान के माध्यम से बच्चे को जन्म देने के योग्य” बताया लेकिन रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि वह केवल आईवीएफ के जरिए दान किए गए अंडों का इस्तेमाल कर मां बन सकती हैं। कानूनी विवाद पति की उम्र को लेकर था। दंपत्ति को कलकत्ता हाई कोर्ट की शरण लेनी पड़ी।
दुनिया भर में लगभग 10%-15% जोड़े बांझपन से प्रभावित हैं। ऐसे में लोगों की सूनी गोद भरने के लिए आईवीएफ तकनीक का आविष्कार हुआ और वर्ष 1978 में दुनिया में सबसे पहले आईवीएफ बच्चे लुई ब्राउन का जन्म हुआ। इंग्लैंड दुनिया का पहला देश है जिसने सहायता प्राप्त प्रजनन को विनियमित करने के लिए ब्रिटिश संसद द्वारा 1990 के मानव निषेचन और भ्रूणविज्ञान अधिनियम को लागू किया था। वहीं भारत में पहली आईवीएफ बच्ची 1981 में कोलकाता में पैदा हुई। डॉ. सुभाष मुखोपाध्याय के सफल प्रयासों के कारण इस बच्ची का जन्म हुआ लेकिन इस दावे को नैतिक दबावों के कारण सरकार द्वारा मान्यता नहीं दी गई थी। इसके 5 साल बाद 1986 में डॉ. टीसी आनंद कुमार और डॉ. इंदिरा हिंदुजा ने हर्षा नामक भारत के पहले आईवीएफ बच्चे का दावा किया और भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने इसे स्वीकार कर लिया।